गुरूजी ने मुझे, पंजाबी बाग स्थित मेरे निवास स्थान पर आध्यात्मिक शक्तियों द्वारा सेवा करने के लिये आशीर्वाद दिया है। मैं छुट्टी के दिन स्थान पर आये लोगों की शारीरिक और मानसिक बीमारियों को गुरूजी द्वारा दी गई आध्यात्मिक शक्तियों का प्रयोग करके दूर करता हूँ। इसको सेवा कहते हैं, यही मेरी भक्ति और साधना है। एक दिन की बात है, लगभग छः फूट लम्बा नवयुवक जिसे उसकी बहन और माँ इलाज के लिये स्थान पर लेकर आई। उस समय मैं, स्थान पर सेवा के लिये बैठा हुआ था। वह मेरे सामने सोफे पर एक हीरो की तरह बैठ गया। वह महिलायें नीचे कारपेट पर बैठी और मुझे उस नवयुवक की समस्या के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि वह कभी-कभी बहुत हिंसात्मक हो, आपे से बाहर हो जाता है। उसे सम्भालना भी बहुत मुश्किल हो जाता है। उन्होंने प्रार्थना की गुरुजी हमें इस पीड़ा से मुक्त कीजिये।
तभी उस नवयुवक ने सोफे पर बैठे हुए ही, मुझे बड़े गन्दे लहजे में सम्बोधित किया, मेरी बेइज्जती की तथा मुझे चुनौती (Challenge) भी दी। मैंने उसे शान्त रहने के लिये कहा, लेकिन वह वहाँ से उठा और मेरे सिर के पास आकर खड़ा हो गया तथा मुझे धमकियाँ देने लगा। उस समय स्थान का कमरा लोगों से भरा हुआ था। यह देखते हुए उन महिलाओं ने मुझसे माफ़ी माँगी और ज़बरदस्ती उसे वहाँ से लेकर चली गई। मैं उन लोगों को देखता ही रह गया।
अगले दिन मैं गुरुजी के पास गया और उन्हें उस नवयुवक द्वारा की गई अपनी बेईज्ज़ती तथा दी गई चुनौती के बारे में बताया। जब मैं बता चुका तो गुरुजी बोले— “बेटा, शैतान को सिर पर नहीं चढ़ने देना, तू डर गया था…”
गुरुजी ने मुझसे आगे कहा–
“तू मेरा शिष्य है और कोई भी शैतान तेरे से ज़्यादा बलवान नहीं हो सकता…।।”
मुझे सारी बातें स्मरण हो आई…, वास्तव में उस नवयुवक का गठीला शरीर देखकर, मैं डर ही गया था।
क्या बात है——!! गुरुजी तो पूर्ण सिद्ध व त्रिकालदर्शी हैं!! वे गुड़गाँव में बैठे हुए सब कुछ देख रहे थे—–
अगले शनिवार,
मैं स्थान पर सेवा कर रहा था। वह नवयुवक दुबारा आया और उसने फिर, ठीक वैसा ही व्यवहार किया, जैसा पिछले शनिवार को किया था। तब मुझे गुरूजी की कही बात याद आई। जब वह अपनी हद् पार कर गया, तब मैं उठा और अपनी लुंगी को सम्भालते हुए बोला, “अब गाली दे दुबारा…” अब वह गाली देने के बजाय एकदम नर्म पड़ गया। मैंने भी बिना समय गवांए, उसे पकड़ा और पीटना शुरु कर दिया और आध्यात्मिक तरीके से दाँये-बाँये तब तक मारता रहा, जब तक उसका खून नहीं निकलने लगा। उसके बाद मैंने रुई का एक टुकड़ा लिया, उसके खून को साफ किया तथा उसे जल पिलाया और उसे अपने बिस्तर पर लिटा दिया। करीब तीस मिनट बाद वह वहाँ से उठा और एक आम साधारण व्यक्ति की तरह चला गया।
अगली बार जब वह मुझे क्लब में मिला, उस समय मैं अपनी टेनिस की ड्रेस में था। मैंने उसे बुलाया और पूछा कि तुम दुबारा क्यों नहीं आये…? वह बोला, “आपने मुझे बहुत पीटा” मैंने उसे कहा, “और क्या करता मैं…, पीटा ही है ना और तो कुछ नहीं…?” वह बहुत नम्र तथा सभ्य व्यक्ति लग रहा था, बोला कि अब वह बिलकुल ठीक है और उसे अब किसी तरह की कोई बीमारी नहीं है।
यह एक बहुत बड़ा चमत्कार था कि एक पागल लड़का, जो अपनी माँ व बहन के लिये मुसीबत बना हुआ था, ठीक हो गया और एक आम आदमी की तरह अपना व्यापार सम्भाल लिया और अपने परिवार का भरण-पोषण करने लगा।
मैं यहाँ बड़े हर्ष के साथ कहना चाहता हूँ कि इसके बाद उसने कोई भी मेडिकल इलाज नहीं कराया। आज वह बिलकुल स्वस्थ है और अपने परिवार के साथ एक आम ज़िन्दगी जी रहा है। अब वह कोई मानसिक मरीज़ नहीं है, जैसा कि वह स्थान पर आने से पहले था।
उस पागल और हिंसात्मक व्यक्ति को ठीक करने में गुरुजी ने सिर्फ दो दिन का ही समय लगाया।
1. पहले शनिवार को उसकी हरकतों को, नजर अन्दाज़
कर दिया…
2. दूसरे शनिवार को उसकी, बीमारी को उसके शरीर से बाहर कर दिया और उसे एक सामान्य नवयुवक बना दिया ताकि अपने परिवार की पूरी तरह से देखरेख कर सके।
गुरूजी ने गुड़गाँव बैठे-बैठे ही यह सारा काम कर दिया, जो समझ में आने वाला नहीं था।
प्रणाम….
हे गुरुदेव ……