रेनुकाजी में, कई हफ्तों की लगातार सेवा के बाद गुरुजी ने अपने कुछ शिष्यों को सेवा के अन्तिम चरण के लिये बुलाया और सभी अपनी इस पवित्र यात्रा के लिये गुरुजी के पास रेनुकाजी चल दिये।
हममें से दो शिष्य, सुबह ही एक अलग कार में चले गये। उन दोनों का आपस में बहुत नज़दीकी सम्बन्ध था और वे आपस में एक-दूसरे के साथ बहुत बे-तकल्लुफ (Informal) भी थे। उस दिन बहुत गर्मी थी। दोपहर के समय वह दोनों करनाल पहुंचे। जब वह बाज़ार से गुजर रहे थे तो उन्हें एक ‘बीयर की दुकान’ नज़र आई और उनमें से एक बोला, “क्यों न हम ‘बीयर’ पीते हुए चलें…?” गुरुजी के पास पहुंचने में करीब छ: घण्टे का समय ओर लगेगा और इतना समय हमें सामान्य (Normal) होने के लिये बहुत है। अतः उसने वहाँ से बीयर ले ली। (साधारणतया: अगर छः घण्टे पहले बीयर पी हो तो उसकी गंध अथवा कोई अवशेष बाकी नहीं बचते अर्थातः नज़र नहीं आते।)
लेकिन हुआ इससे बिलकुल विपरीत……..||
वे दोनो रेनुकाजी पहुँच कर गुरुजी के कमरे में गये और उनमें से एक जैसे ही गुरुजी को प्रणाम करने के लिए झुका,
गुरुजी बोले— “ठूठा पी कर आया है, गुरू के सामने…??” “जा ……और पहले लोगों की लाईन की ‘परिक्रमा’ करके आ…”
गुरुजी अपने आप को सीमाओं में इस तरह से छुपाकर रखते थे कि न तो कोई उन्हें ढूंढ सकता था और न ही समझ सकता था।
रेनुकाजी में रात साढ़े नौ बजे सेवा शुरु हुई और अगले दिन शाम तक चलती रही। इस तरह रेनुकाजी में सेवा का अध्याय सम्पन्न हुआ।
गुरुजी, रेनुकाजी से वापिस आये और उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि वे एक लाख से भी ज्यादा लोगों की भीड़ ऐसी अगल-थलग पहाड़ी स्थान पर भी बिना किसी व्यक्तिगत निमन्त्रण के एकत्र कर सकते हैं।
अब वह शिष्य, जिसने बीयर पी थी घर वापिस आने पर बीमार पड़ गया। वह जो कुछ खाता, उसे उल्टी कर देता। उसने केवल तरल पदार्थ व हल्का खाना शुरु किया लेकिन वह भी उल्टी हो जाता।
जब ऐसा होना नहीं रुका तो वह गुरुजी के पास आया और गुरुजी से ठीक करने की प्रार्थना की। गुरुजी बोले—
“ठूठा पीकर आया था गुरू के सामने…” वह बोला— “गुरूजी छः घण्टे पहले एक बीयर की बोतल पी थी। सोचा था आपके पास पहुंचने तक हज़म हो जायेगी। गलती हो गई गुरुजी, माफ कर दीजिये।”
लेकिन…. उल्टियाँ फिर भी नहीं रुकी।
कई हफ्ते और फिर महीने बीत गये लेकिन उसे लगातार उल्टियाँ होती ही रही। मैंने तथा मेरे कई गुरु भाईयों ने गुरुजी से एक-एक करके उसे ठीक करने की प्रार्थना की, लेकिन उल्टियाँ जारी रही।
अब वह शिष्य बहुत कमजोर हो गया और आखिर वो समय आया कि वह अपने ऑफ़िस भी नहीं जा सकता था। उसने अपनी पत्नी से सलाह की और अपनी बीमा पॉलिसियाँ इक्कट्ठा कर ली तथा अपनी जायदाद के कागजात और पैसे के बारे में भी सांसारिक तौर पर निबटारा करने का निर्णय ले लिया। ताकि उसके बच्चों व पत्नी को बाद में कोई दिक्कत न आये।
उसका शरीर लगभग 40% (चालिस प्रतिशत) कमज़ोर पड़ चुका था। तब हमने गुड़गाँव में आठ-दस शिष्यों की एक आक्समिक बैठक बुलाई और सबने इस विषय की गम्भीरता को देखते हुए, यह निर्णय लिया कि हम सब इक्कट्ठे जाकर गुरुजी के चरणों को पकड़ लेंगे और उस शिष्य को जीवन-दान देने के लिये प्रार्थना करेंगे। यदि हम सब मिलकर ऐसा करेंगे, तो विश्वास है कि गुरुजी का दिल पिघल जायेगा
और वह उस शिष्य को जरूर माफ कर देंगे और फिर हमने ऐसा ही किया—
हम सब मिलकर खड़े हो गये और गुरुजी की प्रतीक्षा करने लगे। जैसे ही गुरुजी अपने कमरे में आये, निश्चित प्रोग्राम के अनुसार हम सबने एक साथ गुरुजी के चरण पकड़ लिये और मिलकर प्रार्थना करते हुए कहा,
“हे गुरूदेव, इसे माफ कर दो——-” अब गुरुजी गम्भीर हो गये। स्थान के पीछे फ्रिज वाले कमरे में, जहाँ बिस्तर वाला बड़ा बॉक्स पड़ा हुआ था तथा वहाँ पर मध्यम सी रोशनी थी। हमने देखा कि गुरूजी का चेहरा कुछ बदल सा गया। उन्होंने उस शिष्य की तरफ देखा और कहना शुरु किया—
“मैंने तुम्हें भगवान बनाया है। लोग तुम्हारे पास अपने दुख दूर करवाने के लिए आते हैं और तुम अपने अन्दर शैतान धारण करके चले आये… और वो भी अपने गुरू के पास…” सभी लोग अपनी सांस रोके खड़े थे, कोई कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। गुरुजी आगे बोले— “लो जिस शैतान ने तुमसे गुरू-अवहेलना कराई थी,
आज मैं उसी शैतान से ही तुम्हें ठीक कराऊंगा।
«
और… तब उन्होंने क्या किया….!! जो कुछ किया वह विश्वास करने योग्य नहीं है। पूरे संसार में, इसका दूसरा कोई उद्हारण नहीं मिलेगा। यह एक ऐसा अनोखा आध्यात्मिक चमत्कार है जो पहले न कभी देखा और न ही कभी सुना…….||
उन्होंने अपने चहेते सेवादार बिटू को बुलाया और एक चौथाई बोतल (पव्वा) काली रम लाने का आदेश दिया। सभी लोग घबरा गये। किन्तु रम की बोतल लाई गई।
गुरूजी ने रम की करीब आधी बोतल, एक स्टील के गिलास में डाली और उसमें थोड़ा सा पानी मिला कर अपने माथे पर लगाया तथा गिलास उस शिष्य को थमाते हुए आदेश दिया—
“ले, एक ही चूंट में पी जा…।।” जब गुरूजी गिलास में रम डाल रहे थे तो वह शिष्य, मेरे कान में फुसफुसा कर बोला, “राजपॉल, ये मुझे खत्म करने लगे हैं शायद….।।” वह सोचने लगा “कि शायद आज उसकी ज़िन्दगी का आखिरी दिन है। ये मुझे क्या पिलाने लगे हैं, इससे तो मेरी ज़िन्दगी, एक मिनट में ही समाप्त हो जायेगी..!! चार-पाँच महीनों का खाली पेट है, बचुंगा नहीं!”
मैंने कहा, “भईया, चुपचाप हाँ में हाँ मिला और पी जा, सोचो मत।” (चिक्तिसा विज्ञान को देखते हुए, उसकी सोच गलत नहीं थी)
हम सब भी अपनी-अपनी सांस रोके खड़े थे।
यह एक अविश्वस्नीय कार्य था—— एक व्यक्ति, जिसका पेट पिछले चार-पाँच महीनों से खाली हो और जो दाल का सूप तक भी न पचा पा रहा हो तो क्या वह खालिस रम पचा लेगा….!! वह फट नहीं जायेगा…??
सभी शिष्य एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे——– उस शिष्य के पास उसे पीने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था।——–
उस शिष्य ने गुरुजी के हाथ से वह गिलास लिया और एक ही चूंट में पी गया। बड़े प्यारे अंदाज़ में पूर्ण अधिकार (Authority) के साथ गुरुजी बोले—-
“जा माफ किया…” उन्होंने आगे आदेश दिया— “अब रसोई में जा और माँ से परांठे लेकर खा और हाँ, तेरा जितना दिल करे, उतने परांठे खा।”
उसने ऐसा ही किया। माताजी ने उसे एक परांठा दिया और वह उसने खा लिया। माताजी के दुबारा पूछने पर उसने एक परांठा और लिया और चट कर गया। हमारे जीवन में यह एक बहुत बड़ा चमत्कार था।
आश्चर्य है … जिस व्यक्ति ने पिछले चार महीने से अन्न का एक दाना
भी न खाया हो, उसने बिलकुल खाली पेट दो परांठे पचा लिये…..!! विश्वास नहीं होता। लेकिन ऐसा हुआ। जिसे स्वयं मैंने, एफ. सी. शर्मा जी ने, डा. शंकर-नारायण तथा और भी कुछ शिष्यों ने अपनी आँखों से देखा।
सभी शिष्य अपनी-अपनी आँखें बन्द करके पहचानने की कोशिश करने लगे कि—
—-आखिर गुरुजी हैं कौन…? क्या मतलब……….?? एक आदमी जिसने पिछले चार महीने से कुछ खाया या पिया ना हो, उसे रम (जो आग है) पिला दो तो वो मरेगा या जियेगा…!! इन्सानी दिमाग से तो मरेगा ही। लेकिन यहाँ तो इतना भी कह दिया, “जा माफ किया…” और उसी वक्त परांठे भी खिला दिये और बन्दा बिलकुल ठीक…।।”
इसका मतलब ये हुआ कि डर, ज़िन्दगी, मौत, बीमारी और तंदरुस्ती ये सब गुरुजी के लिये एक जैसी हैं, सिर्फ खेल-तमाशा…। इसका अर्थ है कि उनको पता था ये अभी ठीक हो जायेगा। यानि कोई डर या ख़तरा बिलकुल नहीं था इनके लिये…।।
तो……
मैं क्या जानूं कि ये कौन हैं,
“मनुष्य के भेस में”
यह सोचने के बजाय कि ये क्या और कैसे हुआ सिर्फ “गुरूजी के बारे में सोचो”, वे क्या-क्या कर सकते हैं। जो कुछ उन्होंने दर्जन भर लोगों के समक्ष किया, वे पढ़े-लिखे और समझदार लोग थे। कौन-कौन से अधिकार और शक्तियाँ हैं इनके पास।
एक ही रास्ता है इन सच्चाईयों को समझने और हज़म करने का और वह है कि गुरुजी से प्रार्थना करें कि वह स्वयं ही हमें वो बुद्धि व शक्ति प्रदान करें, जिससे कोई बात बने।
मैंने क्या देखा और आपने क्या पढ़ा, छोड़ो इसको…| आप बस गुरुजी की अपार कृपा का आनन्द लो। इसलिये दिमाग जितना कम लगाओगे, समझ उतनी ही ज्यादा आयेगी।