हमेशा की तरह मैंने पंजाबी बाग स्थान पर बैठकर सेवा शुरु की। लोग अपनी-अपनी बारी से एक के बाद एक मेरे पास आते और उनके जाने के बाद फिर किसी दूसरे व्यक्ति को मेरे पास भेजा जाता। मैं महागुरू का शिष्य हूँ और उन्हीं ने मुझे अपना शिष्य बनाया है तथा आदेश देकर मुझे सेवा करने का अवसर प्रदान किया है। उस दिन स्थान पर एक नवयुवक आया और पागलों की तरह अभिनय करने लगा। उसका पूरा शरीर काँपने लगा और उसकी आँखों की पुतलियाँ ऊपर की तरफ हो गई।
मैंने उस लड़के के सिर पर हाथ रखा तो उसकी आवाज़ बदल गई। उसकी अपनी पहचान भी बदल गई। मैंने उसके माथे पर स्ट्रोक्स (Strokes) लगाये, तो उसके मुँह से किसी गढ़वाली संत की आवाज़ आई और उसने मुझसे पूछा कि मैं उसे क्यों मार रहा हूँ…? वह बोला…, “मैं एक गाँव का बाबा हूँ। लोग मेरे पास आते हैं। मैं उनकी इच्छाएं पूरी करता हूँ तथा वे लोग ‘लोहड़ी’ के दिन मुझे प्रसाद अर्पण करने का वचन देते हैं।
यह लड़का भी मेरे पास आया था। इसकी भी इच्छा मैंने पूरी की थी और इसने भी मेरा प्रसाद अर्पण करने का वचन दिया था। लेकिन इसने अपना वादा पूरा नहीं किया अर्थातः मेरा प्रसाद नहीं चढ़ाया। बजाय मुझे मारने के आप इससे प्रसाद चढ़ाकर अपना वचन पूरा करने को क्यों नहीं कहते…? जब मैंने इसकी मुराद पूरी की थी तभी इसने मेरा प्रसाद चढ़ाने का वचन दिया था और अब यह अपने वादे से मुकर गया है। तो फिर क्यों न मैं इसके शरीर में आकर इसे सज़ा दूं?
परन्तु मैं गुरुजी के मार्गदर्शन के अनुसार उसके माथे पर तब तक स्ट्रोक्स (Strokes) लगाता गया, जब तक उसने उसके शरीर से बाहर निकल जाना स्वीकार नहीं किया। आखिर वह मान गया। मैंने उसके सिर पर से अपना हाथ हटा लिया और एक झटके के साथ उसने अपनी गद्रन सीधी कर ली। वह लड़का सामान्य हो गया।
उस लड़के ने मुझे अपने पैर की उंगली का एक घाव भी दिखाया और कहा कि यह किसी भी दवाई से ठीक नहीं हो रहा है। मैंने उसे जल, लौंग व इलायचियाँ दी और वह चला गया।
अगले दिन मैं गुड़गाँव गया और जब मैंने गुरुजी को प्रणाम किया तो वह मुझे डांटते हुए बोले—
__ “राज्जे, कल एक गढ़वाल का देवता तेरी शिकायत कर रहा था कि तूने उसकी एक नहीं सुनी और उसे बहुत पीटा?” गुरूजी आगे बोले—
“बेटा, देख तो लिया करो कि सामने भूत-प्रेत के अलावा
कोई और भी हो सकता है।” मुझे इसका अहसास हुआ और मैंने गुरुजी को जो कुछ हुआ था, विस्तार से बताया। मैंने गुरुजी से आगे के मार्ग-दर्शन के लिए प्रार्थना की और उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया।
अगले हफ्ते, जैसे ही मैंने पंजाबी बाग स्थान पर सेवा शुरु की वही लड़का पुनः आया और उसी तरह से बर्ताव करने लगा, जैसा उसने पिछले हफ्ते किया था।
अब मैंने उसे पीटने की बजाय उससे पूछा कि क्या वह गुरूजी के पास मेरी शिकायत करने गया था…? उसने बड़े आराम से जवाब दिया कि उसके पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं था कि बड़े गुरुजी के पास जाकर उन्हें बताए कि आप तो मेरी बात ही नहीं सुनते।
मैं उसकी बात और उसकी पहुँच को सुनकर बहुत खुश हुआ और प्यार से कहा कि वह इस लड़के के शरीर को मुक्त कर दे। ताकि वह आराम से अपनी ज़िन्दगी जी सके और वादा किया कि वह लड़का उसका प्रसाद आने वाली ‘लोहड़ी’ के दिन चढ़ा देगा।
आखिर चमत्कार हो गया………!! वह लड़का पूर्णतयाः स्वस्थ हो गया और उसका वह पाँव का घाव भी अगले ही दिन ठीक हो गया।
कुछ ऐसे गुप्त रहस्य होते हैं, जो साधारण व्यक्ति आसानी से नहीं समझ पाते। लेकिन यह समझना बहुत जरुरी है कि गुरुजी, हर वह बात जानते हैं जो मैं पंजाबी बाग में सेवा करते समय करता हूँ। मैंने सुन रखा था कि सर्व-शक्तिमान गुरूजी के लिये किसी विशेष जगह कोई समय अथवा सीमा का कोई बन्धन नहीं हैं। उनके लिए कोई अवरोध नहीं, कोई सीमा नहीं।
हे गुरुओं के गुरू, ‘महागुरुदेव’, आप इस धरती पर…..
देवो महेश्वरा हो……।।
कृप्या हमें अपना आशीर्वाद देकर,
अनुगृहीत करें।