एक बार गुरुजी के बहुत से शिष्यों की मीटिंग चल रही थी। यह एक बहुत मजेदार मीटिंग थी। हर शिष्य गुरुजी के अविश्वस्नीय कार्यों से सम्बन्धित अपना-अपना व्यक्तिगत अनुभव बता रहा था। हर किसी का अनुभव दूसरे से अच्छा था। हर घटना अति उत्तम थी तथा दिल को छू लेने वाली थी। सबसे सुन्दर बात तो यह थी कि जो कोई भी शिष्य गुरूजी के साथ हुआ, अपना व्यक्तिगत अनुभव बाँट रहा था, वह अन्त में गुरूजी का यश-गान कर रहा होता था। अतः अन्त में यह वार्तालाप एक बिन्दु पर आकर समाप्त हुआ कि सिर्फ गुरुजी ही देने वाले हैं और बाकी सब लेने वाले हैं।
उन सब शिष्यों में से एक शिष्य जो अब तक केवल सुन रहा था, सबसे अंत में खड़ा हुआ और बोला कि मैं सिर्फ एक वाक्य में अपना व्यक्तिगत अनुभव बाँटना चाहता हूँ और वह यह है कि :
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गुरूजी का दास बन कर जीना ज़्यादा अच्छा है बजाय इसके कि संसार का राज्य प्राप्त हो।
वाह….
क्या
सु-विचार कैलक्युलेशन है…!!