मैंने गुड़गाँव गुरूजी के चरणों में लगातार जाना शुरु कर दिया था। गुरुजी के पास रोजाना हर तरह के लोग आते थे। उनमें हर उम्र के स्त्री, पुरूष व बच्चे होते, जो अपनी-अपनी समस्यायें चाहे वह घरेलू, शारीरिक, मानसिक हों या फिर सामाजिक, लाकर गुरुजी के सामने रखते थे।
मैं उन लोगों को बड़ी उत्सुकता पूर्ण दृष्टि से देखता, जो गुरुजी को धन्यवाद देते हुए कहते- ”गुरुजी, आपने मेरा काम कर दिया”
कुछ कह रहे होते–
- ”गुरुजी, आपने मेरी बीमारी दूर कर दी” या
- ‘गुरुजी, आपने मुझे ठीक कर दिया” या
- ”गुरुजी, आपने मेरा बेटा ठीक कर दिया” या
- ‘गुरुजी, आपके आशीर्वाद से, मुझे माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।” या फिर
- ”गुरुजी, आपके आशीर्वाद से मेरा कारोबार, बहुत अच्छी तरह से चल रहा है।”
……मुझे यह देख-सुनकर, बड़ा मजा आता और मैं अपनी जूठे कप धोने या बरामदे में सफाई की सेवा करने में व्यस्त हो जाता। जहाँ पर लोग, गुरुजी से मिलने का इंतजार कर रहे होते या चाय का प्रसाद ले रहे होते।
एक दिन जब मैं बरामदे में झाडू लगा रहा था कि अचानक गुरुजी, बाहर आये और मुझे आदेश दिया कि आज से तुम यहाँ झाडू नहीं लगाओगे और ना ही चाय के जूठे कप धोओगे।
उन्होंने कहा–”मैं बाहर जा रहा हूँ और आज से तुम अन्दर बैठकर जहाँ आर. पी. शर्मा और एस. के. जैन बैठे हैं उनके साथ बैठकर, जल, लौंग और इलायची बनाओगे और लोगों को आशीर्वाद दोगे। तुम वैसा ही करोगे जैसा कि वे करते हैं।”
उन्होंने आगे आदेश दिया—- ”तुम जो लोग स्थान पर आते हैं उनकी सेवा करो और उन्हें रोग मुक्त करो” मैं सोचने लगा कि कहाँ मैं एक छोटा सा उनका तुच्छ सेवक और कहाँ गुरुजी ने मुझे, इस लायक बना दिया। गुरुजी के जाने के बाद, आर. पी. शर्मा जी ने मुझे अपने पास बुलाकर स्थान पर बिठाया। उस समय मैं बहुत घबराया हुआ था, मैंने उनसे पूछा—मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ, जैसा कि आप कर रहे हैं…!! आपकी बगल में, मैं कैसे बैठ सकता हूँ?
श्री आर. पी. शर्मा ने कहा, ”तुम्हें भी ऐसे ही सेवा करनी है, जैसे मैं और जैन साहब करते हैं।” मैंने कहा- ‘आप ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि गुरुजी ने आपको आध्यात्मिक शक्तियाँ दी हैं”। वे बोले— ”गुरुजी ने आपको भी, ‘महागायत्री मंत्र’, ‘महामृत्युन्जय मंत्र’, ‘रक्षा-मंत्र’ और ‘शक्ति-मंत्र’ आदि दिये हैं। इसलिए अब तुम भी लोगों की किसी प्रकार की भी बीमारी दूर कर सकते हो।’ लेकिन मैं उनकी बातों से सहमत नहीं हुआ। शर्मा जी ने आगे मुझसे कहा— ”यह गुरुजी का आदेश है और तुम उसका पालन करो और जो लोग तुम्हारे सामने आकर बैठे, उनके सिर पर अपना हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद दो।’ मैंने कहा, ”…..ठीक है शर्मा जी। लेकिन मैं गुरुजी के आदेश का पालन करने के लिए, केवल दो मिनट ही बैतूंगा।”
और इस तरह से मैंने पहली बार गुड़गाँव स्थान पर आध्यात्मिक सेवा शुरु की। मैंने एस. के. जैन साहब से भी पूछा— ”कैसे लोगों के माथे पर अपना हाथ रखकर, उन्हें ठीक करते हैं और कैसे लौंग, इलायची व जल बनाकर देते है…?” जैन साहब बोले—- ”यह सब कार्य तो गुरुजी करते हैं, फिर चाहे वे यहाँ हों या कहीं ओर। बस तुम सिर्फ वैसा ही किये जाओ, जैसा गुरुजी ने कहा है” और तब से मैंने स्थान परआध्यात्मिक सेवा शुरु कर दी और लोग ठीक होने लगे। …..और उनकी असीम कृपा से, आज भी लोग ठीक हो रहे है, जबकि हम, गुरुजी को अपनी इन आँखों से नहीं देख सकते ।