गुरुजी अपने कमरे में बैठे थे, मैं भी अन्य शिष्यों के साथ उनके पास बैठा था। संतलाल जी, गुरुजी के प्रिय शिष्यों में से एक हैं। जब गुरुजी प्रसन्न-मुद्रा (Light Mood) में होते तो हम भी गुरुजी की इस मुद्रा (Free Mood) का फायदा उठाते हुए, उनसे खुलकर बात कर लेते थे। शिवरात्रि नज़दीक थी और आलुओं के विषय में बात चल रही थी क्योंकि ‘शिवरात्रि का वत’ आलुओं के प्रसाद से ही खोला जाता है। संतलाल जी बोले, “गुरूजी, गुड़गाँव के फार्म में आलू के पौधे बहुत छोटे हैं, मैं नहीं समझता कि इस बार उसमें इतने अच्छे आलू पैदा होंगे कि उनमें से इस ‘शिवरात्रि का प्रसाद’ बन सके।” वह आगे बोले, “आप सोनीपत आकर देखो गुरुजी, वहाँ के फार्म की फसल कितनी अच्छी और अधिक है। मैं ये सोचता हूँ, इस बार ‘शिवरात्रि का प्रसाद’, सिर्फ सोनीपत के आलुओं से ही बन पायेगा…।” गुरुजी ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुरा दिये, बस…. ||
कुछ दिनों बाद, जब गुड़गाँव फार्म में खुदाई शुरु हुई तो उसमें से अच्छी क्वालिटी के बड़े-बड़े आलुओं की बोरियाँ की बोरियाँ निकली, जबकि उधर संतलाल जी के सोनीपत वाले फार्म से छोटे-छोटे और थोड़े से ही आलू निकले।
वह परेशान होकर गुरुजी के पास वास्तविकता बताने के लिए आये। गुरूजी ने उसकी तरफ व्यंग भरी मुस्कान डालते हुए उसे, उसी के द्वारा कुछ दिन पहले कही गई बात याद दिलाई।
संतलाल ने गुरुजी से कहा, “गुरुजी, मुझे खेती का बड़ा पुराना अनुभव है। मेरे फार्म में ऐसा होना, मेरे लिए कोई साधारण बात नहीं है………!! मुझे पूरा विश्वास है कि आपने मेरे सोनीपत वाले फार्म की फ़सल अन्दर ही अन्दर गुड़गाँव वाले फार्म में शिफ्ट कर ली है। वरना पौधों को देखते हुए, कम से कम दस गुना पैदावार होनी चाहिए थी और वह भी अच्छी क्वालिटी के आलुओं की।”
गुरुजी मुस्कुराए और कहने लगे——-
___ “तुझे किसने कहा था, बढ़-चढ़ कर बात करने के लिए…?”
गुरूजी ने आगे कहा,
“तुम गुरू से बराबरी करने से पहले, दो बार नहीं…, हजार बार सोचो।।”
गुरुजी ने बताया—
“सबका भाग्य सम्पूर्ण जगत के मालिक अर्थात
‘देवो महेश्वरा’ ही लिखते हैं।”
मैं गुरू हूँ और उनके लिखे भाग्य को बदल सकता हूँ, बशर्ते कि आकांक्षी मेरे प्रति पूर्णतयाः समर्पित और विश्वास-बद्ध हो।
…भविष्य में इसका ध्यान रखना।