जब गुरुजी अपने ऑफिश्यिल टूअर पर जाते, तो वहाँ अपने शिष्यों में से किसी शिष्य, जैसे सीताराम जी, आर. पी. शर्मा जी, एफ. सी. शर्मा जी, सनेत के सुरेश जी तथा मैं या फिर कुछ और शिष्यों में से किसी को भी ले जाते ताकि वहाँ जब गुरुजी अपने ऑफिस के काम पर जाएं तो उनकी गैर-मौजूदगी में वहाँ सेवा कार्य कर सकें। एक बार मुझे, गुरुजी ने कहा- “तुम मेरी जीप में बैठो, पहाड़ से नीचे चंड़ीगढ़ तक जीप मैं चलाऊँगा।” मैंने देखा कि गुरूजी जीप न्यूट्रल गियर में चला रहे हैं। मैं घबरा गयाऔर डरते-डरते गुरुजी से बोला कि “गुरुजी, पहाड़ से नीचे उतरते समय तो गाड़ी को गियर में रखते हैं।” तो गुरुजी बोले– ”बेटा, मैं ये चाहता हूँ कि इससे ईंधन की बचत हो और मेरे ड्राईवर की कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाये।”
मैं बोला–”……परन्तु गुरुजी, यह तो बहुत खतरनाक है, इससे तो एक्सीडेन्ट भी हो सकता है।” वे अपना चेहरा मेरी तरफ धुमाकर बडे सरल लहजे में बोले —
”बेटा, एक्सीडेन्ट का तो पता ही होता है कि होना है या नहीं’
मैं एक बार फिर ठगा सा रह गया तथा सोचने लगा कि गुरुजी को सब पता होता है कि आगे क्या होने वाला है और- मैंने अपने आप से सवाल किया ”कौन हैं ये?” इस धरती पर एक आम इंसान को तो यह पता नहीं होता कि आगे क्या होने वाला है। लेकिन गुरुजी तो सब कुछ जानते हैं। स्पष्ट है कि जब इन्हें आने वाले कल की पूर्ण जानकारी है तो इन्हें किसी प्रकार की चिन्ता या डर का प्रश्न ही नहीं उठता…..!! केवल भगवान ही, यह सब जान सकता है कि आगे क्या होगा….?
क्या ये स्वयं भगवान तो नहीं…?, या फिर उस निरंकार, अदृश्य भगवान के साथ, इनके कोई तार तो नहीं जुड़े है…..?
माफ कीजिए, इससे आगे, मैं कुछ भी नहीं कह पाऊँगा।।