सुरेन्द्र तनेजा के बड़े भाई ने अपने तथा सुरेन्द्र के बेटे का मुन्डन समारोह करने का प्रोग्राम बनाया और उसके लिए दिन भी तय कर दिया। सुरेन्द्र इस समारोह के लिए गुरुजी से इजाजत लेने के उद्देश्य से, उनके पास गया। लेकिन गुरुजी ने मुंडन कराने के लिए मना कर दिया।
सुरेन्द्र का बड़ा भाई गुरुजी के प्रति अधिक विश्वास नहीं रखता था। इसलिए वह इस बात से सहमत नहीं था। अतः वह अपने छोटे भाई सुरेन्द्र पर झुंझलाया और कहा कि तुम ज़िन्दगी की इन छोटी-छोटी बातों के लिये भी गुरुजी पर निर्भर रहते हो। वह समारोह की तारीख बदलने के लिये तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि वह अकेला ही अपने बेटे का मुन्डन संस्कार कर लेगा और उसने ऐसा कर भी दिया।
कुछ दिनों के बाद, उसके लड़के के पेट में दर्द हुआ। उसने उसे बहुत सहजता से लिया और जिन दवाईयों आदि की जरुरत थी, लाकर उसे दी। परन्तु दर्द ठीक नहीं हुआ। धीरे-धीरे दवाईयाँ बढ़ती गई और उसका इलाज़ मंहगा और मंहगा होता चला गया। लेकिन दर्द वैसे ही जारी रहा।
अब यह उसके माता-पिता और सुरेन्द्र के लिये एक गहरी चिन्ता का विषय बनता जा रहा था। सुरेन्द्र ने यह सब गुरूजी को बताया। गुरुजी बोले—–
“बेटा, मैं जानता था कि उसके भविष्य में क्या लिखा है और मैं यह भी जानता हूँ कि आगे क्या होने वाला है। यही कारण था कि मैंने दोनों बच्चों के मुन्डन संस्कार के लिये मना किया था। तुम मान गये इसलिये तुम्हारा बच्चा बच गया। लेकिन तुम्हारा भाई हठी था और उसने अपनी इच्छा से यह समारोह किया।”
उस लड़के की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती चली गई और आखिर वह नहीं रहा।
उस समय सुरेन्द्र, आर. पी. शर्माजी के साथ, पूसा रोड पर ही कहीं था। उसकी गुरुजी से फोन पर बात हुई तो गुरुजी ने उससे कहा कि उस लड़के के पास, ज़िन्दगी का सिर्फ एक ही घण्टा शेष बचा है और इसी के साथ यह भी आदेश दिया कि, तुम घर नहीं जाओगे—
ठीक एक घण्टे के बाद सुरेन्द्र को घर से फोन आया और उसे परिवार के सदस्यों की चीखें सुनाई दी।
वाह गुरुजी—-
आप सब कुछ ऐसे जानते हैं जैसे सब कुछ आपकी आँखों के सामने घट रहा हो…….!!
अपने चरणों से कभी जुदा न करना,
मेरे साहेब……।।