गुरुजी, अपने ऑफिस में थे और सुरेन्द्र तनेजा भी उनके साथ था। गुरुजी के सहकर्मियों ने गुरुजी से तीन सौ रुपये कमेटी (Committee Contribution) में, उनके मासिक अंशदान के लिए मांगे। गुरूजी ने अपना पर्स खोला और उसमें से सौ-सौ के दो नोट निकाले और बाकी के सौ रुपये के लिए, दस और बीस के नोट दिये । स्पष्ट था कि गुरूजी के पर्स में सौ रुपये का और नोट नहीं था। नहीं तो वह छोटे नोट नहीं देते। उसके बाद वे सुरेन्द्र के साथ गोल मार्किट गये और वहाँ से गुड़गाँव चले गये।
गुड़गाँव स्थान पहुंचने पर माता जी ने गुरुजी से पूछा कि क्या वे ‘करवाचौथ व्रत’ से सम्बन्धित खाने का सामान ले आये है..? परिस्थिति (Situation) को समझते हुए, सुरेन्द्र ने गुरुजी से कहा कि वह बाज़ार जाकर फल, मिठाई तथा जो जरुरी सामान है, ले आता है। परन्तु गुरुजी ने कहा कि यह काम हमेशा वे स्वयं ही करते हैं अतः आज भी स्वयं ही करेंगे। वह सुरेन्द्र को साथ लेकर बाज़ार चले गये। डॉक्टर चन्दर भी उनके साथ गया और वे एक दुकान पर पहुंचे।
वहाँ पहुँचकर गुरुजी ने अपने पर्स से, सौ-सौ के तीन नोट निकाल कर चन्दर को दिये और सामान खरीदने को कहा। डॉक्टर चन्दर सभी सामान ले आया लेकिन कुछ पैसे बच गये। गुरुजी ने डॉक्टर चन्दर को दुबारा भेजा और बचे हुए पैसों को भी खर्च करने का आदेश दिया। चन्दर के जाने के बाद, सुरेन्द्र ने गुरुजी से पूछा कि उसने उनका पर्स देखा था, लेकिन उसमें तो कोई नोट थे ही नहीं। फिर ये सौ-सौ के तीन नोट कहाँ से आ गये…?
गुरुजी बोले—
___ “बेटा, मेरा पर्स कभी खाली नहीं हो सकता, चाहे मैं इसमें से, तिने भी पैसे क्यों न निकाल लूं। लेकिन… मैं ऐसा तब तक नहीं करता, जब तक कि कोई इज्जत का सवाल न आ जाये।”
“आज मेरी अर्धांगिनी ने, जो मेरी शक्ति है, मुझसे कुछ माँगा और मुझे खर्च करने के लिए पैसे चाहिए थे इसीलिए मैंने अपनी इस आलौकिक शक्ति का प्रयोग किया है। परन्तु पर्स से निकाले गये या उनसे बचे हुए रुपयों को वापिस पर्स में नहीं डाल सकता। इसीलिए मैंने, चन्दर को बाकी बचे पैसों को भी खर्च करने का आदेश दिया।”
अपने प्रारंभिक जीवन में गुरु की खोज के लिए मैंने, बहुत साल बिताये। कई सन्तों और महात्माओं तथा गुरुजनों के सम्पर्क में रहा। इस दौरान मैंने बहुत से चमत्कार भी देखे जो सिर्फ आम जनता को केवल प्रभावित करने के लिये ही किये जाते हैं। लेकिन जैसा गुरूजी ने किया, वैसा कहीं भी नहीं देखा, वह बिलकुल अलग था जो सिर्फ अपने शिष्यों के सामने उनको ज्ञान से अवगत कराने के लिए और शायद अपना एक आलौकिक रुप दर्शाने के लिए किया था। इसका डॉक्टर चन्दर को बिलकुल आभास तक नहीं हो सका ।
गुरूजी द्वारा किया गया यह कार्य दैविक नियमों पर आधारित था। इसके बारे में, मैं पहले नहीं जानता था।
मैं बहुत खुश-किस्मत तथा ईश्वर का कृतज्ञ हूँ कि उसने मुझे इनके पवित्र चरणों में रहने का सौभाग्य प्रदान किया। गुरूजी ने मुझे तथा मेरे अन्य गुरू भाईयों को, अनेक दैविक रहस्यों से पर्दा हटा कर एक अछूते आध्यात्मिक जीवन का अनुभव कराया और पूर्णरुप अपने अधिकार में रखकर, तब से अब तक चला रहे हैं ।
आफरीन गुरुदेव—-
आफरीन