मैंने अपनी फैक्ट्री में, अपनी समझ के अनुसार, सिंक की एक डाई बनाई। जब उसको हाईड्रॉलिक प्रैस पर लगाकर चलाया तो वह असफल हो गई। मेरे मुख्य टेक्नीशियन ने बहुत कोशिश की, लेकिन सब बेकार…… आखिर मैंने टैक्नीकल मार्गदर्शन का सहारा लिया। इस समस्या से सम्बन्धित जितना मैं जानता था, उतना किया। लेकिन फिर भी मेरे हाथ दुबारा असफ़लता ही लगी। कई घण्टों की लगातार मेहनत के बाद भी नतीजा शून्य ही था।
तभी फोन की घण्टी बजी और बब्बू ने फोन उठाया। उधर से गुरुजी थे। उन्होंने पूछा—-
“…ओय, की कर रया ए तेरा प्यो?”
(तुम्हारे पापा क्या कर रहे हैं? )
बबू, जो सारी वास्तविकता से पूर्व परिचित था बताया कि पापा मशीन पर हैं और एक डाई सही परिणाम नहीं दे रही है। पापा और टैक्नीशियन ने सारी कोशिशें कर ली हैं लेकिन कोई लाभ नहीं हो रहा। डाई के ड्रेनेज बोर्ड वाली साईड में एक डेन्ट आ रहा है। बहुत प्रयत्न करने के बाद भी नतीजा जीरो है। वे बहुत परेशान हैं और सारा काम रुका हुआ है।
गुरुजी बोले—- “उससे कहो कि बाथरूम में जाये और सिगरेट पिये।”
इतना कह कर गुरुजी ने फोन रख दिया। बबू आया और मेरे पूछने पर बोला कि गुरुजी का फोन था। मैंने कहा कि तुमने मुझे फोन पर क्यों नही बुलाया..? उसने कहा गुरुजी ने अपने आप फोन बन्द कर दिया। मैंने पूछा कि क्या कह रहे थे गुरुजी…? उसने बताया कि वे आपके लिए पूछ रहे थे, तो मैंने डाई की समस्या के बारे में बताया और कहा कि कई घण्टों से पापा मशीन पर हैं लेकिन डाई ठीक परिण पाम नहीं दे रही। इसलिए पापा बहुत परेशान लग रहे हैं। गुरूजी ने आपके लिए, संदेश दिया है कि आप बाथरूम में जाकर सिगरेट पिओ और उन्होंने फोन काट दिया। इतना कहकर बबू हंसने लगा।
मैंने उसे हंसने के लिये डाँटा और कहा कि मुझे एक सिगरेट दो। मैं बाथरूम में गया और सिगरेट पीने लगा। सिगरेट पीते ही मुझे समस्या का समाधान मिल गया। बाहर आकर मैंने अपने टैक्नीशियन को बुलाया और उसे समझाया कि आधा इन्च मोटी, 2″x8″ की एक लोहे की प्लेट लो और उसे डाई की एक निश्चित जगह पर वैल्डिंग कर दो।
मेरी इस बात पर वह टैक्नीशियन हंसा और बोला, “सर, मेरा बीस साल का अनुभव है इस लाईन का और आप टैक्नोलॉजी का मजाक उड़ा रहे हैं और साथ ही मेरा भी…., जो आप बता रहे हैं वह इस समस्या का समाधान नहीं है।
मैंने उससे कहा कि मैं इस बारे में कोई बहस नहीं चाहता, तुम जाओ और जैसा मैंने कहा है वैसा करो। वह अनमने मन से बबू को साथ लेकर, मशीन पर चला गया। करीब एक घण्टे बाद वे दोनों वापिस आये तो उन दोनों के चेहरे पर मुस्कान थी। अद्भुत—-विस्मित—-अविश्वस्नीय।
प्रयोग सफल था…… सिंक का निर्माण कार्य चालू हो गया था……
– वाह… गुरुजी वाह… टैक्नोलोजी के बादशाह नहीं, आप तो टैक्नोलोजी के खुदा हैं.. ।
कैसे ब्यान करूं मैं अपने भाव..?
गुरुजी, यन्त्रकला के ज्ञाता (Engineer God), आप बिना डाई या प्रोडक्ट को देखे, फोन पर अपने शिष्य को आध्यात्म द्वारा पूरा डिजाईन समझा देते हैं। ओ, मेरे स्वामी, मेरे पूजनीय, ….ओ मेरे गुरुदेव,
केवल आप ही आप हो। आप जानते थे कि मैं क्यों असहाय और परेशान था। मेरे पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं बचा था और मैं हार चुका था। आप ये सब अच्छी तरह से देख रहे थे और मजे ले रहे थे परन्तु कुछ भी हो—हैं आप,
कृपासिन्धु—- करुणानिधान—– आप भगवान की तरह आये और मेरी सहायता की। आप पहले तो खुशी-खुशी घण्टों मुझे देखते रहे और जब देखा कि मैं बहुत परेशान हो चुका हूँ और थक गया हूँ, तब आपने मुझे नहीं, मेरे बेटे को फोन कर दिया और इस तरह से मुझे आध्यामिकता का एक और अछूता पाठ पढ़ा दिया।
आप सब कुछ जानते हुए भी, सामने नहीं आये। आप भगवान की तरह आये और मुझे बचा लिया।
हे मेरे परमेश्वर——- आपके पास हर समस्या का समाधान है।