दिमाग की बीमारी से ग्रस्त एक व्यक्ति, गुरूजी के पास आया। उसे डाक्टरों की तरफ से जवाब मिल चुका था और डॉक्टरों के अनुसार उसकी ज़िन्दगी, सिर्फ पन्द्रह दिन ही शेष बची थी। ऐसा सोचते हुए कि अब उसके लिए कोई उम्मीद नहीं बची एक आखिरी उम्मीद के साथ, किसी को लेकर वह गुरुजी के पास चला आया। गुरुजी ने उसके सिर पर हाथ रखा, उसे आशीर्वाद दिया तथा जल के साथ एक लौंग निगलने के लिए दिया और कह दिया—-
“जा…, तू ठीक है।”
काम हो गया, वह ठीक हो गया। दो महीने बाद वह अपने न्यूरो सर्जन के पास, जिससे वह इलाज करा रहा था, गया तो डॉक्टर उसे जिन्दा देखकर एकदम चौंक गया………!!
उसने पूछा, कि वह कौन है जिसने ऐसा सम्भव कर दिखाया और वह कहाँ है….? ऐसा मेडिकल सांईस द्वारा तो सम्भव था नहीं।।
तब उस मरीज़ ने उसे अपने गुड़गाँव जाने तथा गुरुजी द्वारा दिये गये ‘लौंग व जल’ की बात बताई। डाक्टर ने उसके दिमाग का सीटी स्कैन किया और यह देखकर हैरान रह गया कि एक लौंग मरीज के दिमाग में चिपका हुआ है।
वह असमंजस की स्थिति (Confused) में आ गया। उसने अपने चिकित्सा व्यवसाय (Medical Practice) के क्षेत्र में ऐसे दिमाग में लगा लौंग, कभी नहीं देखा था। जैसा कि उसने कहा कि उसने लौंग निगला था। लेकिन कैसे वह चलकर दिमाग के उस खराब हिस्से तक पहुँच कर ठीक जगह पर लग गया…?
यह अविश्वस्नीय था….
लेकिन ऐसा ही हुआ था। हे मेरे स्वामी, आपकी ये अजीब महिमा है। परन्तु विशेष बात तो यह है कि वह व्यक्ति जिन्दा है…मरा नहीं..
“क्यों और कैसे” जैसे अनेकों शब्द, लाईन में लगे गुरुजी के चरणों की तरफ व्याकुलता से देख रहे हैं और इसके जवाब की प्रतीक्षा कर रहे हैं……। हो सकता है इसका जवाब मिले भी किसी को……..!!
किन्तु यह सब भी गुरुजी की ही,
इच्छा पर निर्भर करता है।