रात का समय था, मैं कुछ अन्य शिष्यों के साथ गुरूजी के कमरे में उनके पवित्र चरणों में बैठा था। गुरूजी रात के दो बजे तक हम पर आध्यात्मिक-ज्ञान और आशीर्वादों की वर्षा करते रहे। तदोपरांत उन्होंने खाने का आदेश दिया। जब सब लोग खाना खाकर चल दिये तो एफ. सी. शर्मा जी ने मुझे देखा तो मेरे पास आकर बोले, क्या बात है…? मैंने उन्हें बताया कि मेरे पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा है। उन्होंने फिर पूछा कि क्या दर्द बरदाश्त नहीं हो रहा…? तो मेरी ओर से नकारात्मक उत्तर सुनने के बाद, उन्होंने सलाह दी कि मैं गुरुजी के कमरे का दरवाजा खटखटाऊं और दर्द ठीक करने के लिये प्रार्थना करुं।
मैं गुरूजी के कमरे में पहुंचा तो मैंने देखा कि गुरूजी के एक हाथ में प्लेट और दूसरे में चम्मच है। जैसे ही उन्होंने मुझे पेट पर अपना हाथ रखे झुका हुआ देखा तो उन्होंने अपनी प्लेट एक तरफ रख दी और पूछा,
“…क्या हुआ पुत?” तब उन्होंने मुझे अपने दोनो हाथों से पकड़ा और फिर एक हाथ मेरे पेट पर तथा दूसरा मेरी कमर पर रखकर, दबा दिया और मेरा पेट दर्द गायब हो गया। लेकिन उन्होंने मुझे जाने नहीं दिया और बैठने के लिये कहा।। उन्होंने इन्दु को आदेश दिया कि वह एक लिमका ले आये और साथ में माताजी द्वारा बनाया हुआ चूरन भी लाये। उन्होंने वह मुझे पीने के लिये दिया और कहा—
“ …काफी दर्द थी ना पुत ?” मैं वहाँ से दूसरे कमरे में जाकर आराम की नींद सो गया। इतना प्यार… !! इतना अपनापन… !!
इतनी सहानुभूति…!! मैंने अपने जीवन में पहले कभी महसूस नहीं की थी। बहरहाल, गुरूजी ने जिस प्रकार अपनी प्लेट और चम्मच नीचे रखी और जिस तरह पूर्ण अपनेपन से मेरी तरफ देखा, मैं पूरी ज़िन्दगी उस पल को नहीं भुला सकता।
एक ‘सर्वोच्च प्रभुत्व’, जैसा कि स्वयं भगवान के पास है, का प्रयोग करते हुए, मेरे दर्द को बिना समय लगाये समाप्त कर दिया।
आफरीन………..गुरुजी…..!!
आप महानतम् हैं।