अस्सी के दशक की बात है। गुरुजी गोल मार्किट स्थित आहूजा के फ्लैट में थे। मैं उनके दर्शन करने व आशीर्वाद लेने के लिये उनके पास पहुंचा।
वहाँ बहुत से भक्तजन व शिष्य भी आये हुए थे। कुछ घण्टों तक का ऐसा आनन्दपूर्ण समय, जिसकी यहाँ व्याख्या करना भी सम्भव नहीं है, हमने अपूर्व खुशी के साथ गुरूजी के पवित्र चरणों में बिताया तथा उनके मुखारविंद से हमें बहुत सी आध्यात्मिक जानकारियाँ मिली।
यहाँ मैं अपनी ज़िन्दगी का एक अभूतपूर्व अनुभव लिख रहा हूँ : – अचानक गुरुजी ने कहीं और चलने का निर्णय लिया। मैंने कार का दरवाज़ा खोला और गुरुजी अगली सीट पर बैठ गये। मैं डाईवर की सीट पर बैठ गया और अपनी घड़ी की तरफ देखने लगा, जिसमें उस समय दोपहर के 12 : 45 बजे थे।
उन्होंने मुझे कार स्टार्ट करने का आदेश दिया। गुरूजी ने मुझसे पूछा कि तुम किसका इन्तज़ार कर रहे हो, तो मैंने अपनी घडी की तरफ देखा और कहा, “गुरूजी 12 : 45 बजे (पौना समय) हैं और मैं सवाये समय का इन्तज़ार कर रहा हूँ।” (क्योंकि उन्होंने ही हम सब को यह आदेश दे रखा था, कि अपनी यात्रा शुरु करने का समय, हमेशा ‘सवाया समय’ ही रखना।)
(सवाया का मतलब जीरो से कुछ मिनट ऊपर, जैसे कि 10:15, 12 : 15, या 1 : 15 और जीरो से कुछ मिनट नीचे जैसे 10 : 45, 11 : 45 या 12 : 45 अर्थात ‘पौना समय’)
फिर जो कुछ गुरुजी ने किया, वह अविश्वस्नीय था। उन्होंने अपनी घड़ी में समय बदल कर 1 : 15 कर दिया। उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा—–
“लै राजे, अब सवाया टाईम हो गया, गाड़ी स्टार्ट कर और चल।”
मैंने गुरुजी के आदेश पर वैसा ही किया परन्तु कार चलाते हुए भी, मैं यह सोचता जा रहा था कि गुरूजी हमें तो कहते हैं कि समय के पाबन्द रहो… लेकिन गुरुजी स्वयं…???
गुरुजी ने दुबारा मेरी तरफ देखा और बोले—
“बेटा, ….मैं गुरु हूँ। मैं समय का पाबन्द नहीं, अपितु समय मेरा पाबन्द है।” जहाँ तक मुझे याद है गुरूजी कभी भी अपने ऑफिस के लिये लेट नहीं होते थे। मैं मंत्रमुग्ध हुआ सा रह गया। मैं तो सिर्फ उतना ही सोच सकता हूँ, जितना मेरे बस में हैं।
मेरे विचार से असंख्य लोगों में एक व्यक्ति हूँ मैं, जिसे मेरे आराध्य देव ने स्वयं चुना है और अपने साथ रखा है….,
………हमेशा के लिए…..।।
और
यह हैं…
गुरूजी— भगवान, एक मनुष्य के रुप में।
इतने साहसी, इतने मन मोहक, इतने दयालु, इतना प्यार करने वाले, इतना ध्यान रखने वाले, इतने क्षमावान,
इतने सहनशील, इतने सन्तुष्ट, जिन्हें न तो भूख लगती है और न ही प्यास, हमेशा एक जैसे, हमेशा भयमुक्त, चेहरे पर अनगिनत तरह की मुस्काने लिये हुए, आँखों से बातें करने वाले, एक सम्पूर्ण चरित्र निर्माता…
ये हैं….
मेरे गुरुजी,
हमेशा मेरे और तुम्हारे।।