कुल्लू (रायसेन) में, मनीष व मन्जु सूरी के निवास पर गुरुजी ने अपना स्थान बनाया हुआ है। मातारानी व उनके बच्चे रेणु, इला, बब्बा, छुटकी व नीटू के साथ इन्दु, बिट्टू, रुचि, पोमी, रुबी, पप्पू और इनके साथ-साथ शिष्य सुरिन्दर तनेजा, ललित मदान, परवानू के गुप्ताजी तथा और भी बहुत से शिष्य अपने-अपने परिवारों के साथ वहाँ थे।
अचानक गुरजी ने सब बच्चों को पानी के झरने (Waterfall) में प्राकृतिक स्नान करने की आज्ञा दी और सब बच्चे झरने में स्नान का आनन्द लेने में मस्त हो गये। इन बच्चों में मेरी बेटी चारू भी थी, जिसने शायद ज़्यादा देर तक आनन्द लिया और लौटने पर उसे बुखार हो गया।
प्रोग्राम के अनुसार गुरुजी सबको लेकर वापिस गुड़गाँव आ गये। लेकिन चारू का बुखार खत्म नहीं हुआ। इस तरह दिन बीतते गये मगर बुखार वहीं का वहीं था। दवाई खाने की आज्ञा नहीं थी, इसलिए चारू रोज़ गुरुजी से बुखार उतारने की प्रार्थना करती रहती।
इसी तरह की एक सुहानी शाम को, गुरुजी का कमरा लोगों से खचाखच भरा हुआ था, हल्के-फुल्के वातावरण का लाभ उठाकर चारू ने कहा, “गुरुजी आज मेरा बुखार उतार दीजिये ना …प्लीज़”
उसकी ओर देखकर गुरुजी ने कहा–
“…आजा, तेरा बुखार खत्म करता हूँ।” इतना कहकर, उन्होंने प्लेट में रखे किसी मिश्रण में से एक चम्मच उठाया और चारू को बोला, “….खाजा ।”
मातारानी जी भी वहीं बैठी थी, कुछ घबरा कर कह उठी, “ये क्या खिला रहे हो इसे…..!!”
गुरुजी ने कहा, “तुम्बे की अजवायन है।” (वास्तव में वह अजवायन नहीं घुग्गी थी, जो तम्बाकू और चूने के मिश्रण से तैयार की जाती है। कुछ साधक, अपनी साधना के दौरान इसका प्रयोग करते हैं …कभी-कभी।)
जैसे ही चारु ने उसे मुँह में डाला, उसका सिर घूमना शुरु हो गया। उसे लगा कि वह गिर जायेगी। अतः वह वॉश-बेसिन (Wash Basin) की तरफ भागी। बब्बा उसके पीछे भागा और उसे सम्भाला। इतने में उसने बड़ी ज़ोर से उल्टी कर दी और बहुत सारा कचरा बाहर निकल आया।
और बस….!!
….उसके बाद न कोई बुखार रहा और ना ही कोई अन्य तकलीफ़।
आप कृपा कीजिए गुरुदेव कि हमें आपकी बातों और आपके कार्यों की समझ आ सके।
…प्रणाम जी।