”गुरुजी, मेरी बेटी मुक्ता की शादी में केवल 10-11 दिन ही शेष बचे हैं मैं क्या करुंगा…?”
”शादी के लिए सामान खरीदना है सारे इन्तजाम करने है और मेरी पेमेन्टस नहीं आ रही हैं।’ गुरुजी बोले—मैं अपने आप कर लूंगा। तू चिन्ता न कर। मैं बोला— ”गुरुजी, शादी मतलब गहने चाहिए, कपड़े लेने हैं और शादी की पार्टी के लिए कुल मिलाकर लाखों रुपये चाहिए।”
गुरजी बोले—
”मेरी पोती है। मैं अपने आप कर लूंगा। मैं अट्ठन्नी में भी शादी कर लूंगा। तू जा…, और अपने दूसरे काम देख।”
गुरूजी के इस अंदाज को देखकर, ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरी बेटी की शादी में मेरी कोई जिम्मेदारी थी ही नहीं और वे नहीं चाहते थे कि उनके इस काम में मैं कोई दखल-अंदाजी करुं।
बड़ी अजीब बात थी कि सारे काम अपने आप होते चले गये। कुछ लोगों ने जैसे कि केवल गुप्ता और कुछ अन्य लोग मेरे पास आये और बोले— ”आप सिर्फ स्थान पर बैठ कर सेवा कीजिए। बाकी के सारे काम हो जाऐंगें।’
आखिर… सब काम बड़ी खूबसूरती से हो गये और कहीं पर भी पैसे की कोई कमी महसूस नहीं हुई। मानने की बात नहीं है, परन्तु इतना शानदार विवाह और खर्चे का पता भी न चला…..!!