एक दिन सुबह-सुबह का समय था और हमेशा की तरह मैं, अपन शोरुम में बैठा था कि मेरा एक चपरासी दौड़ता हुआ आया और मुझसे कहने लगा कि बाहर एक आदमी को ‘मिरगी का दौरा’ पड़ गया है। मैं दौड़कर बाहर आया और देखा कि वास्तव में ही उसे ‘मिरगी का दौरा’ पड़ा था। उसकी आँखों की पुतलियाँ ऊपर की तरफ थी, उसकी बाजु और टाँगें अकड़ गई थी और उसके मुँह से झाग निकल रही थी।
मुझे याद आया कि गुरुजी ने मुझे आशीर्वाद दिया है और आध्यात्मिक शक्तियाँ भी दी हैं, ताकि मैं जरुरतमन्दों की सहायता कर सकूँ। मैंने तुरन्त उसके माथे पर हाथ रख दिया और अपने चपरासी को एक गिलास में पानी लाने को बोला और वैसे ही कर दिया, जैसा गुरुजी ने मुझे आदेश दे रखा था।
तब तक वहाँ पर काफी भीड़ जमा हो चुकी थी। फिर मिनटों में वह आदमी एक आम आदमी की तरह उठा और चला गया। मैं अन्दर से बहुत संन्तुष्टि व खुः शी महसूस कर रहा था।
- कि गुरूजी ने मुझसे, क्या करवा दिया..?
- कैसे गुरुजी ने, मेरे दिमाग में विचार डाला..?
- गुरूजी के लिए कोई, सीमा या बन्धन नहीं ।
- गुरूजी सब कुछ कर सकते हैं या फिर, अपने शिष्यों से करवा सकते हैं।
मैं गुरुशिष्य के साथ-साथ एक आम इन्सान भी था और मानवता के नाते मैंने यह कार्य बाहर सड़क पर किया था। जैसा करना लगभग असम्भव था।
मैं गुरुजी की ताकत का अन्दाजा लगा रहा था कि कितनी दूरी है और क्या उनकी पहुँच। वे मुझसे इतनी दूर थे और उन्होंने, किस तरह से प्रेक्टीकल रुप से उस व्यक्ति को ठीक कर दिया जो कि सड़क पर पड़ा था। मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था।
वास्तव में मैं अपने आप को उनकी छत्र-छाया में सुरक्षित महसूस कर रहा था। मैं व्याकुलता से शाम का इन्तजार करने लगा। शाम को मैं गुस्जी के पास गया और उन्हें आज के चमत्कार के बारे में बताना चाहा। लेकिन वहाँ पर तो सब कुछ बदला-बदला सा था। मैं गुरुजी के पास गुड़गांव पहुंचा तो पता चला कि गुरुजी स्थान पर बैठे हैं और आशीर्वाद दे रहे हैं। मैं दौड़कर स्थान पर पहुंचा और हाथ जोड़कर उनके पवित्र चरणों को छुआ। इससे पहले कि मैं कुछ बोलूं, गुरुजी ने मुझे डाँटना शुरु कर दिया और कहा— ”तूने सड़क पर बन्दा ठीक कर दिया, अब जाओ और अस्पताल में पड़े सब मरीजों को भी ठीक कर दो
गुरुजी ने ये मुझे, ताना मारने के अन्दाज़ में कहा और मैं कुछ समझ नहीं पाया। बजाय इसके कि गुरुजी मेरी पीठ थपथपायें, उल्टा मुझे डाँट रहे हैं…!! मैंने अपने दोनों हाथ जोड़कर गुरुजी से प्रार्थना की– ”पर गुरुजी, आपने ही तो कहा था कि मैंने तुम्हें शक्तियाँ दी हैं, अब लोगों के दुः ख दूर करो।” मैं नहीं जानता था कि मैंने क्या गलती की है? गुरुजी बोले— ‘हाँ बेटा, मैंने तुम्हें सारी शक्तियाँ दी हैं, लेकिन तुम उसका ही भला कर सकते हो, जो तुम्हारे गुरु-स्थान पर आये और वो भी तब, जब वह तुमसे माँगे और वह भी गुरु-स्थान पर ही।”
तुम किसी को भी ठीक नहीं कर सकते। तुम इस बात को अच्छी तरह से समझो कि एक भगवान है और वो ही किसी को दरिद्र या बीमारियों से ग्रसित करता है, यह उसका फैसला है जोकि हमेशा ठीक होता है। वह एक अच्छा और बड़ा जज है। ”तुम कैसे उसके फैसले को बदल सकते हो?” ”यह तो उस परम-पिता परमेश्वर के काम में दखल अन्दाजी है।’
गुरुजी आगे बोले,
- मॉफ करने का अधिकार, सिर्फ गुरु के पास है।
- मैं गुरु हूँ और वास्तव में, भगवान भी खुः श होता है, यदि मैं किसी पीड़ित व्यक्ति को मॉफ करता हूँ या ठीक करता हूँ।
- मैं भगवान की सेवा करता हूँ, जोकि प्रत्येक प्राणी में निवास करता है।
- मैं उस प्राणी को पीड़ा-मुक्त करके, उस भगवान की ही सेवा करता हूँ, जो उसके अन्दर है। चाहे वह व्यक्ति यह महसूस करे या न करे।
तब मुझे याद आया कि एक बार किसी व्यक्ति ने गुरूजी के पैर छुए थे और उनसे, उनकी कृपा” की प्रार्थना की थी। उन्होंने उस व्यक्ति को पहले गुड़गाँव जाकर, ‘बड़े वीरवार’ के दिन ‘मीठी फुल्लियों का प्रसाद’, चढ़ाने के लिए कहा था।