महा-शिवरात्रि का शुभ अवसर था और सभी शिष्य गुड़गाँव स्थान पर थे। हमेशा की तरह, असंख्य लोग देश-विदेश से इस अवसर पर गुड़गाँव आये हुए थे तथा स्थान के सभी कमरे लोगों से भरे हुए थे। बाहर मुख्य सड़क के फुटपाथ पर लोगों की लम्बी-लम्बी कतारें लगी हुई थी परन्तु वहाँ पूर्णतयाः शान्त वातावरण था। गुरूजी ने मुझे आदेश दिया कि तुम अपने गुरूभाईयों के साथ जाओ और जहाँ पर लोग गुरू दर्शन के लिए इन्तज़ार कर रहे हैं वहाँ की परिक्रमा’ करके आओ। (‘परिक्रमा’ का अर्थ है– जहाँ से लोगों की लाईन शुरु होती है और जहाँ पर समाप्त होती है, वहाँ तक लोगों को देखते हुए जाओ और फिर वहाँ से वापिस आओ।)
मैंने स्थान से चलना शुरु किया और चलते-चलते करीब दो किलोमीटर दूर तक चला गया जहाँ तक लोगों की लाइनें लगी हुई थी। मैंने देखा कि वहाँ केवल एक लाईन ही नहीं, बल्कि वहाँ तो पाँच-पाँच लाईनें लगी हुई थी। हजारों की संख्या में लोग वहाँ खड़े, अपनी बारी का इन्तज़ार कर रहे थे परन्तु सभी शान्त व प्रसन्न थे। स्थान के सामने पार्क में ही क्या… सड़क पर भी सैंकड़ों की संख्या में लोग गुरुजी के दर्शनों की एक झलक पाने का इन्तज़ार कर रहे थे। वे धीरे-धीरे स्थान की तरफ बढ़ रहे थे सभी के दिमाग में केवल एक ही विचार था कि उन्होंने सिर्फ़ गुरूजी के दर्शन करने हैं।
क्या उनका लक्ष्य है……? वाह..
मैं ऐसे गुरुभक्तों का जिनका मेरे गुरु के प्रति इतना प्यार और इतनी भक्ति है, प्रसन्नता से स्वागत करता हूँ।
यह सोचकर कि गुरूजी को बता दूं जो कुछ मैंने बाहर देखा है, मैं अन्दर स्थान के कमरे में गया तो देखा कि गुरूजी वहाँ कमरे में नहीं हैं। मैं स्थान के सामने वाले कमरे में चला गया। लेकिन वहाँ पहुँचकर जो कुछ मैंने देखा वह देखकर स्तब्ध रह गया। मैंने देखा कि गुरूजी बहुत से लोगों के बीच में खड़े हैं। जो कुछ मेरी आँखों ने देखा…, वह बिलकुल अविश्वस्नीय था….!!
मैंने देखा……
उनका चेहरा और सिर,
बाकी सभी लोगों से दुगना बड़ा था।
मैंने अपने सिर को झटका दिया आँखें बन्द की और दुबारा आँखें खोलकर अपने आप को देखा कि मैं जो देख रहा था, वह हकीकत थी या फिर मेरा भ्रम……..!! लेकिन वह एक हकीकत ही थी।
लगभग एक मिनट तक मुझे ऐसा ही दिखता रहा। कुछ समय के बाद गुरुजी अपने असली रुप में आ गये। यह जो मैंने ऊपर कहा है यह मेरे आध्यात्मिक जीवन का एक अभूतपूर्व अनन्य अनुभव (Exclusive Experience) है। न इससे पहले और न ही बाद में कभी ऐसा हुआ।
सत्तर के दशक में जब मैं गुरुजी के पास आया और उन्होंने मुझे अपना शिष्य बनाया, उससे पहले मैं कई संतों से मिला था और मुझे उनका सान्निध्य भी प्राप्त हुआ था। जाहिर है उन लोगों के साथ रहकर भी मैंने बहुत से चमत्कार देखे होंगे। परन्तु उसमें से कोई एक-आध भी, गुरुजी के चमत्कारों से मेल नहीं खाता था।
उनसे मैंने जो कुछ भी सीखा था, वह केवल सिद्धान्तिक (Theory) था, लेकिन गुरुजी तो स्वयं कर्ता हैं। जो कुछ उनसे चाहो वह वास्तविक रुपा से कर देते हैं, अर्थातः वह पूर्णतयाः सिद्धान्तिक (Theory) और व्यवहारिक (Practical) हैं।
लोग उनके पास दर्द, बुखार तथा अपनी अन्य शारीरिक अथवा कई अन्य परेशानियाँ लेकर आते और उनसे ठीक करने की प्रार्थना करते तो गुरूजी उन्हें तुरन्त, उनकी समस्या से मुक्त कर देते। कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें ठीक होने में समय ज्यादा लगता था। पूछने पर गुरुजी ने बताया कि अधूरे विश्वास के साथ या मुझे परखने के लिए जो लोग आते हैं, उन्हें ठीक होने में समय ज़्यादा लगता है। ये ‘बुड्डे बाबा’ (भगवान) का अपना तरीका (Style) है।
ये घटनाएं ही मेरी धरोहर हैं। इन्हीं घटनाओं से मेरे गुरूजी की महिमा का बखान होता है और मुझे उनके आलौकिक रुप के दर्शन होते हैं। उनका आशीर्वाद पाने के बाद, मुझे नहीं पता कि मुझे और कुछ प्राप्त करने की जरुरत रह गई है।
आप धन्य हैं गुरुजी, आप त्रिलोकी नाथ की तरह
सिर्फ देने वाले हैं।
प्रणाम…. साहेब जी।