गुरूजी ने, मेरी दो बेटियों के लिये गुड़गाँव स्थान पर दो लड़कों का चुनाव किया। गुरुजी ने मुझे बच्चों के शगुन करने के लिये एक छोटा सा समारोह करने की अनुमति दी और उसका इन्तज़ाम करने के लिए पंजाबी बाग भेजा।। दोनों परिवार, जिनमें से एक मुम्बई और दूसरा हैदराबाद से था, उन्होंने अपने-अपने रिश्तेदारों और सम्बन्धियों को समारोह में शामिल होने के लिये निमंत्रण दिया। क्योंकि गुरूजी ने यह निर्णय अचानक लिया था इसलिए इस समारोह में कुछ चुने हुए लोगों के ही शामिल होने की उम्मीद थी।
करीब 125 लोगों के भोजन के प्रबन्ध के लिये रसोइये (Caterer) को कहा गया। लोगों का आना शुरु हो गया और वह समय भी आ गया, जब लोगों को खाना परोसा जाना था।
उसी समय मेरे बड़े भाई की पत्नी, मेरे पास आई और बोली कि 240 से अधिक मेहमान आ चुके हैं और खाना सिर्फ 125 लोगों के लिये ही बनवाया गया है। आप रसोइये (Caterer) को तुरन्त और खाना बनाने का आदेश दें।
तभी अचानक मातारानी (माताजी), जो इस समारोह की सर्वे-सर्वा थी, वहाँ पहुंच गई। मैंने उन्हें खाने की स्थिति के बारे में अवगत कराया और पूछा कि क्या और खाना बनाने के लिये कहूँ..? माताजी ने कहा—
“नहीं राज्जे, हम खाना दुबारा नहीं बनाते।
चल, मुझे वहाँ ले चल जहाँ खाना रखा हुआ है…”
मातारानी जी, मेरे साथ रसोई में गई और आदेश दिया कि मैं सभी पतीलों के ढक्कन उठाऊं। मैंने वैसा ही किया। फिर उन्होंने सब पतीलों में झांक कर देखा और यह आदेश दिया कि अब इन पतीलों में झाँक कर कोई नहीं देखेगा और न ही अंदाजा लगायेगा कि इसमें कितनी मात्रा शेष है।
उन्होंने आगे कहा, सिर्फ एक रसोईये के अलावा पतीलों का ढक्कन कोई नहीं उठायेगा और वो भी सिर्फ (Waiters) के बर्तन में डालने के लिए ही…
खाना परोसा गया और
चमत्कार हो गया।
250 से अधिक लोगों ने खाना खाया और Caterer तथा Waiters के 35 लोगों ने भी खाना खा लिया और उसके बाद भी सभी पतीलों में
खाना बचा हुआ था। जब मैं गुरुजी से गुड़गाँव स्थान पर मिला तो वह बोले—- __“ …राज्जे, तेरी माँ, अन्नपूर्णा है…||”
“खाना कभी खत्म, हो ही नहीं सकता था बेटा…” गुरूजी आगे बोले—
“चाहे ओर लोग भी आ जाते भरपेट खाना उन्हें भी मिलता।”
एक साधारण व्यक्ति के दिमाग से यदि सोचता, तो इसका जवाब मिलना, कभी भी सम्भव नहीं होता। सब्जियाँ, चावल, घी व आटा, 125 लोगों के खाने के लिये खरीदा व बनवाया गया था। लेकिन वह 300 से भी अधिक लोगों को परोसा गया।
—-यह कैसे सम्भव हुआ…?——
यह सवाल हमेशा दिमाग में रहेगा, लेकिन इसका जवाब कोई नहीं दे सकेगा, सिवाय गुरुजी के और मातारानी जी के। इसलिये गुरुजी के साथ बिना किसी शर्त के पूर्ण रुप से समर्पित हो जाना ही ठीक रहेगा।
मुझे तो इस बात का जवाब मिल गया क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि गुरुजी ने मेरे विश्वास को बार-बार इसी तरह पक्का किया और मैं सिर्फ यही याद कर-कर के ही जी रहा हूँ….. और औरों को बाँटने का आनन्द ले रहा हूँ।
ना ही कभी यह खोजने की कोशिश करता हूँ,
कि यह कैसे सम्भव हुआ…।।