अस्सी के दशक की महाशिवरात्रि समारोह की बात है, सम्पूर्ण भारत के अलावा विश्व के अन्य देशों से भी लोग इसमें शामिल होने के लिए गुड़गाँव में एकत्र हुए थे। शिवरात्रि से दो दिन पूर्व, एक नवयुवक जो जर्मनी से आया था और गुरुजी की फोटो खींचना चाहता था। गुरुजी बोले—
“बेटा, आज नहीं…. दो दिन बाद खींच लेना।”
वह नवयुवक बोला, “गुरुजी, आज क्यों नहीं?” गुरूजी बोले—
“बेटा, आज मैं हूँ नहीं।” वह नम्रता से जिद्द करते हुए बोला, “गुरुजी.. आप मेरे सामने बैठे हैं, कैसे मान लूं कि आप नहीं हैं?” गुरुजी मुस्कुराये और बोले—– “ठीक है”
उस नवयुवक ने गुरुजी की फोटो खींचनी शुरु कर दी। उसने गुरुजी की 17 या 18 फोटो खींची। अगले दिन वह नवयुवक फिर आया और गुरुजी के कमरे के बाहर ही खड़ा हो गया। मैंने उसे देखा और अन्दर आने को कहा—, “आ जाओ…, गुरूजी के दर्शन कर लो।”
वह एकदम चुपचाप खड़ा था और कुछ देखे जा रहा था। फिर अचानक कहने लगा, “मैं जर्मनी का एक विख्यात फोटोग्राफर हूँ, मेरा यह व्यवसायिक कैमरा भी बहुत कीमती है। पहली बार ऐसा हुआ है कि मैंने फोटो खीची हों और सारी की सारी फिल्म-रोल खाली आई हो। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मेरी इस विफ़लता का कारण क्या है…?”
गुरूजी मुस्कुराते हुए बोले—- “बेटा, तेरी फोटोग्राफी में कोई कमी नहीं,
पर जब मैं हूँ ही नहीं तो फोटो कैसे आयेगी..?”
गुरुजी आगे बोले—-
“शिवरात्रि पर खींचना, तब आ जायेंगी।” शिवरात्रि के बाद उसने फोटो खींची, सभी फोटो ठीक आ गई। लेकिन उस खाली फिल्म-रोल का रहस्य, वह अपने साथ जर्मनी ले गया।
गुरूजी ने उससे कहा था कि मैं यहाँ नहीं हूँ… इसका क्या मतलब…??
इसका मतलब या तो रब या फिर कोई रब
जैसा ही बता या समझ सकता है।