जम्मू के मुश्ताक मौहम्मद जाफरी के साथ मेरे व्यापारिक सम्बन्ध थे। एक बार वे अपनी पत्नी और बेटे के साथ दिल्ली आये तो मेरी उनसे फोन पर बात हुई। उन्होंने मुझे बताया कि उनके बेटे अली असगर को निमोनिया, तेज़ बुखार और उसके शरीर पर छालों के निशान पड़ गये हैं। वह बहुत परेशान लग रहा था। अतः मैं उसे देखने होटल चला गया। वहाँ पहुँचकर मानवता के आधार पर मैंने उसे अपने यहाँ ठहरने के लिये कहा और यह भी कहा कि जो चिकित्सा ज़रुरी है, उसका इन्तज़ाम वहीं हो जायेगा।
मैं उन सब को अपने साथ लेकर पंजाबी बाग आ गया। रात का खाना खाने के बाद वे सब सोने चले गये। अगले दिन सुबह, जब मैं अपने ऑफिस के लिये निकलने लगा तो उसकी पत्नी मेरे पास आई और कहने लगी, “भाई साहब, आप मेरे बेटे को ठीक कर दीजिए…|” वह मुझसे इस तरह की बात करेगी, इसके लिये मैं तैयार नहीं था। अतः मैंने उसकी बात को नज़र-अन्दाज करते हुए ऐसा जाहिर किया कि जैसे मैं नहीं समझा कि वह क्या कहना चाहती है।
तब उसने मुझे बताया कि उसने रात को मेरी बेटी ‘पुन्चू’ से अली असगर की बीमारी के बारे में बात की थी। तब उसी ने ही बताया है कि आप ‘गुड़गाँव वाले गुरुजी’ के शिष्य हो और आप उसके बेटे को ठीक कर सकते हो। उसने बड़ी नमता से कहा, “भाई साहब, अली असगर को साल में दो-तीन बार मिरगी का दौरा पड़ता है और हमें, हर बार दो से तीन महीने तक अस्पताल में रहना पड़ता है। हम बड़ी मुसीबत में हैं। मैंने उसे विस्तार से बताया कि यहाँ के कुछ नियम और कायदे हैं। जिसका बड़ी सख्ती से पालन करना जरुरी होता है। क्योंकि आप लोग मुस्लिम समुदाय से है, इसलिए आप लोगों के लिये यह करना मुश्किल होगा। वह बोली, “मैं एक माँ हूँ… और चाहती हूँ कि मेरा लड़का ठीक हो जाये। इसलिए आप जो भी कहेंगे… मैं वह सब कुछ करने के लिए तैयार हूँ।”
तब मैंने कहा, “अच्छा, तो ये दवाई का लिफाफा बाहर फेंक दो।” मेरी इस बात पर उसके पति को थोड़ी हिचकिचाहट हुई लेकिन वह उस पर नाराज़ हुई और उसे तुरन्त लिफ़ाफा बाहर फेंकने के लिए कहा। उसने उसकी बात मानते हुए लिफाफा बाहर सड़क पर फेंक दिया। मैं उसके विश्वास की परीक्षा लेना चाहता था। मैं फिर बोला, “अच्छा तो ठीक है, आज रात मैं तुम्हारे बेटे को ठीक कर दूंगा।” मैंने उससे कहा कि वह अपने बेटे को आज रात मेरे बिस्तर पर लिटा दे। जब हम लोग रात का खाना खाने के बाद सोने के लिए उस कमरे में गये, जहाँ अली असगर पहले से सो रहा था। जैसे ही मैं उसके बिस्तर पर बैठा, एकदम उसे मिरगी का दौरा पड़ गया। उसने काँपना शुरु कर दिया, उसकी आँखों की पुतलियाँ ऊपर की तरफ हो गयी तथा उसके बाजू व टाँगें अकड़ गई।
वह जोर से चिल्लाई…, “हाय अल्ला , मेरा बच्चा …….!!
और उसने अपने बच्चे को अपनी गोद में ले लिया। मैंने उसे, उसकी गोद से छीन कर अपनी गोद में लिया
और उसके माथे पर गुरुजी द्वारा दिये गये गुप्त संदेशानुसार, स्ट्रोक्स (Strocks) लगाने शुरु कर दिये। इस काम में कुल तीन से चार मिनट का समय लगा होगा कि वह लड़का बिलकुल सामान्य हो गया।
यह कार्य, उसके तथा उसके पति के लिये कोई चमत्कार से कम नहीं था। वे दोनों एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे और अपने बेटे से बात कर रहे थे “असगर, क्यों क्या हुआ बेटा…?” वह लड़का बोला, “कुछ नहीं अम्मी…” जिस तरह से असगर ने उनसे बात की उन्हें इसकी कोई उम्मीद नहीं थी।
वह खुशी से लगभग चिल्लाते हुए बोली, “भाई साहब…, पिछली बार जब इसे ऐसा दौरा पड़ा था तो हम इसे तुरन्त अस्पताल ले गये थे और इसके इलाज के लिये हमें तीन महीने तक वहाँ रुकना पड़ा था। आपने ऐसा क्या किया कि यह कुछ ही मिनटों में बिलकुल ठीक हो गया?”
मैंने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा कि–
यह गुरुजी द्वारा दी गई आध्यात्मिक शक्तियाँ है, जिसका कोई अन्त
नहीं है और उन्होंने ही आपके बेटे को मेरे द्वारा ठीक कराया है।
मैंने उन्हें जल दिया और कहा, चिन्ता की कोई बात नहीं, रात को आराम से सो जाओ। अगली सुबह अली असगर को कोई बुखार नहीं था और उसके शरीर पर जो छाले बन गये थे, वे सब भी गायब हो गये थे। मुश्ताख मौहम्मद जाफरी और उसकी पत्नी ने अपनी ज़िन्दगी में ऐसा पहली बार देखा था कि दौरे के बाद सब कुछ तुरन्त एकदम सामान्य हो गया। वे मंत्रमुग्ध से हो गये थे। कुछ दिन मेरे पास रुकने के बाद वे खुशी-खुशी जम्मू, अपने घर लौट गये। उसे यह बीमारी दुबारा फिर कभी नहीं आई। अली असगर, उस समय करीब आठ साल का बच्चा था। कुछ महीनों के बाद, जब अपने पिता के साथ एक बार जम्मू के रघुनाथ बाजार से कहीं जा रहा था तो रास्ते में मन्दिर की तरफ इशारा करके अपने पिता से जिद्द करने लगा कि वह उसे, उस मन्दिर में ले जाये। उसके पिता ने मुस्लिम होने के नाते हिचक महसूस की। लेकिन अली असगर बोला, “अब्बू, ये सेखरी अंकल के मौला का घर है और मैंने उनसे मिलना है, वे उनके साथ अन्दर बैठे हैं।” मुश्ताख मौहम्मद ने मुझे ये बात बताते हुए कहा कि उसे बहुत अंचम्भा हुआ, क्योंकि उन्होंने उनकी ज़िन्दगी में कभी मन्दिर के बारे में, उसके सामने कभी कोई बात नहीं की थी। यह उस लड़के की ही समझ थी जैसा कि उसने कहा कि सेखरी अंकल, मन्दिर में बैठे है। (अपने कारोबारी-क्षेत्र में लोग मुझे सेखरी के नाम से ही जानते हैं)
गुरूजी हमारी सोच से भी बहुत आगे हैं। उस लड़के तथा उसके माता-पिता के प्रति, वे कितने दयालु हैं कि जिसे मिरगी जैसी श्रापित बीमारी हो, उसे केवल एक रात में सम्पूर्ण जीवन के लिए ठीक कर दिया……..!! किस तरह से इसकी व्याख्या करें, कि गुरुजी क्या हैं? । जब मैं इसका जवाब देने या व्याख्या करने के बारे में सोचता हूँ, तो अपने आपको बहुत छोटा महसूस करता हूँ।
मैं अपने भगवान से सिर्फ, उनकी कृपा माँगता हूँ।
प्रणाम है गुरुजी…..