दरियागंज में मेरा एक शोरूम था। जहाँ बर्तन तथा अन्य सामान का व्यापार होता था। कई बार गुरुजी की विशेष कृपा होती और वे हमें आशीर्वाद देने के लिए, वहीं आ जाते थे।
ऐसे ही एक दिन, दोपहर का समय था और गुरुजी मुझे अनुगृहीत करने के लिए आ गये। गुरूजी के आने की खबर फैल गई तथा कुछ और शिष्य भी वहाँ पहुँच गये।
मैं गुरूजी की कुर्सी के पास नीचे जमीन पर बैठ गया और उनकी टाँगें दबाने लगा। मैं लगातार ऐसा करता रहा और गुरुजी अपने सामने खड़े सभी लोगों पर आध्यात्मिक-ज्ञान और अपने आशीर्वादों की वर्षा करते रहे। गुरुजी अपनी पूर्ण एकाग्रता के साथ, आध्यात्मिकता के गूढ़ रहस्य बताने में लीन थे और मैं लीन था उनकी टाँगें दबाने में।
तभी अचानक गुरूजी के मुख्य शिष्यों में से एक सीताराम जी, आ पहुंचे और उन्होंने गुरुजी के पवित्र चरणों में प्रणाम किया। परन्तु जैसे ही उन्होंने मुझे टाँगें दबाते हुए देखा तो मुझसें उत्सुकता-वश पूछा कि मैं गुरुजी की कौन सी टाँग दबा रहा हूँ। मैंने उनकी तरफ देखा और पूछा, “क्यों क्या हुआ……??” उन्होंने बताया कि सुबह जब मैं माताजी के दर्शन करने गया था तो उन्होंने मुझे बताया था कि गुरुजी की टाँग में बाल-तोड़ हो गया है। मैंने तुरन्त गुरुजी की पैन्ट को ऊपर उठाया तो मैं एकदम हैरान हो गया… ओह…… ये तो वही टाँग है और उसमें से द्रव्य (पस) भी निकलने लगा था।
मैं यह तो जानता था कि हर किसी व्यक्ति के लिए बाल-तोड़ का दर्द असहनीय होता है। मैंने गुरुजी से पूछा, “गुरुजी, आपने मुझे बताया क्यों नहीं…. कि आपकी टाँग में बाल-तोड है…”
वे बोले—
“जब एक शिष्य अपने गुरु की सेवा का आनन्द ले रहा हो तो, मैं उसके आनन्द में खलल कैसे डालू ?”
मैंने कहा, “परन्तु गुरुजी, बाल-तोड़ पर तो हल्का सा कुछ छू भी जाये तो असहनीय दर्द होता है……
इस पर गुरुजी बोले : “बेटा, दर्द तो तब आयेगी ना, जब मैं उसे आने दूंगा। मेरी मर्जी के बगैर, वह कैसे आ सकती है——-??”
क्या अविश्वस्नीय शब्द थे…….!! ऐसे शब्द इस ज़िन्दगी में इससे पहले कभी नहीं सुने थे। हर इन्सान सुख-दुख के जाल में फंसा हुआ है, लेकिन ऐसा कहते हुए, आज से पहले, कभी किसी को नहीं सुना था।
“क्या मेरे लिए यह मुमकिन था कि यह मैं समझ सकूँ कि गुरूजी ने अभी क्या कहा है…?” मैं इस विषय पर अपने दिमाग का इस्तेमाल करने में असमर्थ हूँ कि इसे समझ सकू, न ही इस पर कोई व्याख्या या विचार करूं ।
यह सब होने के बाद— आज भी उनकी वही आवाज़ और वही शब्द, मेरे कानों में गूंजते हैं और वही आनन्दित तथा चमकता हुआ चेहरा, मेरे सामने आ जाता है।
एक नम्रतापूर्ण साधारण सी व्याख्या है कि गुरुजी आप सम्पूर्ण जगत के ‘सर्वोच्च-स्तरीय’ ज्ञान के ज्ञाता हैं।
गुरूजी, मेरी आपसे यही प्रार्थना है, कि आप मुझे इतना ज्ञान और सामर्थ्य दो कि आपके द्वारा दिये गये, इस ज्ञान को समझ सकू।
क्या दर्द एक व्यक्ति है, जो एक किराये की टैक्सी लेकर गुरुजी के दरवाजे पर आये और उनसे पूछे कि…..
“क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ ?”
दर्द हमारे अन्दर से उठती है और उसे हम स्वयं ही महसूस करते हैं। अगर चिकित्सा विज्ञान की बात करें, तो दर्द तो सिर्फ बेहोशी की हालत में ही महसूस नहीं होती। परन्तु गुरुजी तो पूर्ण जाग्रत अवस्था में थे और अपने शिष्यों को आध्यात्मिक ज्ञान दे रहे थे। आज तक, मैंने ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं देखा, न ही मिला, जो कि दर्द को यह कह कर रोक दे और आदेश दे कि तुम मत आओ ।
माफ करना…… मैं इसकी व्याख्या कैसे कर सकता हूँ, जब कि मैं कुछ जानता ही नहीं हूँ। सिर्फ गुरुजी से प्रार्थना कर सकता हूँ,
कि वह स्वयं ही इसका खुलासा करें ।