गुरुजी के परमशिष्य श्री आर. पी. शर्मा को उनके घर से टेलीग्राम आया कि उनकी माताजी अंतिम सासें ले रही हैं और उन्हें तुरन्त अलीगढ़ बुलाया है। उसी समय वे टेलीग्राम लेकर गुड़गाँव पहुंचे और उन्होंने वह टेलीग्राम गुरुजी को दिखाया। गुरुजी ने टेलीग्राम लिया और उसे मरोड़कर शर्माजी के हाथ में देते हुए कहा—–
“तुम मेरे स्कूटर की पिछली सीट पर बैठो” और स्कूटर स्टार्ट करके वे अलीगढ़ की तरफ चल दिये।
बीच रास्ते में शर्माजी ने कहा, “गुरुजी, ऐसा लग रहा है कि हमारे पीछे बारिश हो रही है।” गुरुजी ने कहा—- “चिन्ता की कोई जरुरत नहीं है…”
और वे चलते रहे। उस समय वे अलीगढ़ से करीब सौ किलोमीटर की दूरी पर थे सारे रास्ते बारिश गुरुजी से पीछे पच्चीस-तीस फुट की दूरी पर होती रही और तब तक उनके पीछे ही रही, जब तक वे अलीगढ़, शर्माजी के घर तक नहीं पहुंच गये। परन्तु बारिश उन्हें छू तक नहीं सकी। गुरूजी ने शर्माजी के घर पहुंचकर देखा कि शर्माजी के सभी सगे-सम्बन्धी, उनके यहाँ एकत्र हो चुके थे और शर्माजी की माताजी को नीचे जमीन पर बीच में लिटा रखा था और उनके सिर के पास शास्त्रों के अनुसार एक दीपक भी जल रहा था। गाँव की रीति के अनुसार, अन्तिम संस्कार के लिए लकड़ियों का प्रबन्ध भी हो चुका था। शर्माजी की माताजी, अपनी आँखे बन्द किये हुए थी तथा उनकी सांस बहुत कोमलता से धीरे-धीरे चल रही थी। वह पूर्णतः शान्त अवस्था में पड़ी थी। गुरुजी ने वहाँ पहुँच कर शर्माजी की माँ की बाँह पकड़ी और ऊपर उठाते हुए उन्हें पैरों पर खड़ा कर दिया और लगभग चिल्लाते हुए, ज़ोर से बोले—-
“चाची…. चल, दिल्ली चलें।” (गुरुजी, शर्माजी की माँ को चाची के नाम से ही सम्बोधित करते थे) शर्माजी के घर पर उपस्थित बहुत से पड़ोसियों तथा रिश्तेदारों ने गुरुजी के इस कार्य को देखा। लेकिन इस पर किसी ने भी कोई आपत्ति या टिप्पणी नहीं की। सभी लोग केवल आर. पी. शर्मा और गुरुजी की तरफ देखते रहे। लेकिन सबसे अधिक मजेदार बात तो यह थी कि, चाची ने दिल्ली पहुंचकर अपनी लम्बी छुट्टियों का आनन्द लिया। शर्माजी अपनी माताजी को बस द्वारा दिल्ली ले आये। वे छ: महीने तक शर्माजी के पास दिल्ली में रही और फिर गुरुजी की आज्ञा से वापिस अलीगढ़ लौट गई। अलीगढ़ वापिस लौटने के बाद भी वह कई वर्षों तक जीवित रही और समय-समय पर गुरूजी के पास, उनके दर्शनों के लिए आती रहीं। अब मैं जबरदस्ती अपनी सांसें रोक कर, इस घटना के बारे में आरम्भ से अन्त तक क्रमवार सोचता हूँ कि :
1. गुरुजी ने टेलीग्राम लिया और उसे अपनी हथेली से मरोड़ दिया।
2. गुरुजी ने उस दिन के अपने सारे कार्यक्रम स्थगित कर दिये और स्कूटर पर करीब दो सौ किलोमीटर की कष्टपूर्ण यात्रा की।
3. गुरुजी के पीछे लगभग तीन घण्टे तक लगातार बारिश का होना और उसका गुरुजी को कोई कष्ट न देना। 4. गुरुजी का रिश्तेदारों और अंतिम संस्कार के इन्तजाम की परवाह किये बिना, चाची को उठने का आदेश देना।
5. शर्माजी का अपनी माताजी को बस द्वारा दिल्ली लाने का जोखिम उठाना।
6. आखिरी और आश्चर्यजनक… ! ! गुरुजी जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं और वे अपने आप को प्रमाणित कर सकते हैं ।
आफ़रीन…….गुरुदेव……!!